गतांक से आगे
सीमा का मन बहुत विचलित था । कैसी दुविधा में डाल दिया था उसे कैलाशी ने । इस बात को वह स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थी लेकिन स्पष्टत : मना भी नहीं करना चाहती थी । किंकर्तव्यविमूढ की तरह वह अनमनी सी ही रही । क्या जेठ जी ने अपनी इच्छा सासू मां को बताई है या यह केवल सासू मां की इच्छा है ? उसके मन में बार बार यह प्रश्न उठ रहा था । उसे विगत समय की ऐसी कोई घटना याद नहीं आई जब जेठ जी ने उसकी तरफ देखा हो । उसने जब कभी भी जेठ जी को पानी या दूध देने की कोशिश की थी तब तब उन्होंने ऐसा करने से मना किया था । फिर अब अचानक क्या हुआ ? एकदम से इस तरह का आचरण ? अब तक उसके मन में जेठ जी के लिए बहुत आदर था मगर वह एक ही क्षण में हवा हो गया था । अगर उन्हें "भूख" इतनी ज्यादा थी तो उन्होंने विवाह क्यों नहीं किया ? इस प्रश्न का कोई जवाब उसके पास नहीं था ।
घर में पानी खत्म हो गया था । वह कलसी लेकर पानी लेने चल पड़ी । कुंआ पास ही था । वहां पर दो चार औरतें पहले से ही थीं और हंसी मजाक करते हुए पानी भर रही थीं ।
"अरी चंपा, कब आई तू ? तेरा आदमी कैसा है" ?
"कल ही आई हूं चाची । 'वो' एकदम से ठीक हैं" चंपा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ।
चंपा का नाम सुनकर सीमा चौंकी । क्या यह वही चंपा है जो जेठ जी से प्यार करती थी ? उत्सुकता से उसकी नजरें चंपा पर गड़ गईं । चंपा सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति थी । गौर वर्ण, सुंदर नैन नक्श और भरा पूरा शरीर । इतनी सुन्दर स्त्री को भी ठुकरा दिया था जेठ जी ने ? उसके मन ने इसे स्वीकार नहीं किया । उसे लगा कि वह चंपा कोई और होगी , ये तो नहीं हो सकती है ।
इतने में उसने उन औरतों को अपनी ओर देखते पाया तो उसने अपनी नजरें नीची कर लीं । उसे देखकर वे दोनों औरतें धीरे धीरे बातें करने लगीं
"ये कौन है चाची" ? आवाज यद्यपि धीमी थी पर सीमा को सुनाई दे रही थी
"अपने श्याम की लुगाई है"
अबकी बार कौतुहल से देखा था चंपा ने । सीमा की नजरें चंपा की नजरों से टकरा गईं । सीमा की नजरों में एक प्रश्न था जिसका जवाब चंपा की नजरों से मिल गया था । अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी । वह पानी लेकर घर आ गई ।
घर के काम काज में उसका मन नहीं लग रहा था । बार बार एक ही प्रश्न कौंध रहा था कि चंपा जैसी सुंदर स्त्री को ठुकरा कर क्या सही किया ? पर जवाब नहीं मिल रहा था उसे । इसी उधेड़बुन में कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला । उसने खाना बनाया । और दिनों की तरह राधे खाना खाने लगा । सीमा लाज के कारण और सिकुड़ गई थी । उसने गौर किया कि जेठ जी ने उसकी ओर एक बार भी नहीं देखा था । इससे उसे चैन मिला । इसका मतलब है कि जेठ जी के मन में तो कुछ नहीं है पर शायद सास के मन में कुछ है । यदि ऐसा है तो क्या है और क्यों है ? पर इसका कोई उत्तर उसे मिल नहीं रहा था । हो सकता है कि जेठ जी सबके सामने ऐसा व्यवहार कर रहे हों ? शायद ऐसा ही होगा वरना सासू मां ऐसा क्यों करेंगीं ?
राधे खाना खाकर घूमने चला गया । वह एक घंटे बाहर ही रहता है और पास के मंदिर में पाठ करता है । तब तक घर का सारा काम हो गया था ।
राधे घर पर आ गया । कैलाशी ने सीमा को इशारा किया कि वह दूध का गिलास राधे को ले जाये । सीमा ने कातर नजरों से सास की ओर देखा मगर कैलाशी की नजरें आदेशात्मक थीं । वह चुपचाप दूध का गिलास लेकर राधे के कमरे की ओर धीरे धीरे चली ।
राधे की पीठ दरवाजे की तरफ थी । पदचाप सुनकर उसे लगा कि मां दूध लेकर आई है
"रख दो मां , मैं अभी थोड़ी देर बाद पीऊंगा" बिना देखे उसने कहा
सीमा कुछ नहीं बोली और वहीं खड़ी रही । राधे ने घूमकर देखा तो सीमा को दूध के गिलास के साथ खड़ा पाया ।
"तुम ? तुम यहां क्या कर रही हो" ? तनिक आवेश में राधे ने कहा "तुम्हें मना किया था ना कि मेरे कमरे में मत आया करो, फिर क्यों आई हो" ?
सीमा थर थर कांपते लगी और उसके हाथ से दूध का गिलास छूट कर गिर पड़ा । उसकी रुलाई फूट पड़ी और वह वहां से भाग गई ।
राधे तनिक आवेश में आ गया था । वह कैलाशी के पास गया और कहने लगा
"कितनी बार कहा है मां कि उसे मेरे कमरे में मत आने दिया करो, फिर भी वह मानती ही नहीं है" । शिकायत भरे लहजे में राधे ने कहा
"वह अपनी इच्छा से नहीं गई थी, मेरे आदेश पर गई थी" कैलाशी का स्वर दृढ था
"तुमने भेजा था उसे ? पर क्यों" ?
"हां मैंने भेजा था । क्यों कोई परेशानी है क्या" ?
"वह श्याम की पत्नी है मां । और तुम जानती ही हो कि श्याम को मैं छोटा भाई नहीं मानता बल्कि उसे अपना पुत्र मानता हूं । इस तरह सीमा को मैं अपनी पुत्र वधू मानता हूं । उसका मेरे कमरे में इस तरह आना मुझे अच्छा नहीं लगता है" ।
पास के कमरे में पलंग पर पड़ी सीमा यह सब वार्तालाप सुन रही थी । राधे की बातें सुनकर उसका मन आदर और श्रद्धा से भर आया । उसे अपनी सोच पर शर्मिंदगी भी हुई कि उसने जेठ जी के बारे में गलत सोचा था । इतने में कैलाशी की आवाज आई
"क्या हो गया जो सीमा दूध लेकर तेरे कमरे में चली गई ? है तो तेरे भाई की पत्नी ही"
"नहीं मां, भाई की पत्नी नहीं, छोटे भाई की पत्नी । वह मेरी पुत्री के समान है । उसे फिर कभी मत भेजना मेरे कमरे में" । इतना कहकर राधे वहां से अपने कमरे में चला गया ।
अगले दिन कैलाशी चाय लेकर राधे के कमरे में गई तो वहां कोई नहीं था । उसने इधर उधर देखा मगर राधे कहीं नहीं था । तब उसने शोर मचाया तो श्याम और सीमा दोनों दौड़े चले आये । पूरा मकान छान मारा मगर राधे कहीं नहीं था । श्याम ने उसके कमरे को गौर से देखा तो एक छोटा सा कागज मिला जिस पर लिखा था
"मां,
मुझे माफ कर देना । मुझे आज की घटना अच्छी नहीं लगी । मैंने श्याम को बेटा और सीमा को बेटी जैसा माना है । मैंने विवाह नहीं करने का निर्णय इसलिए लिया था कि मैं लठैतों से टक्कर ले सकूं । इसके लिए मेरी जान भी जा सकती थी और मुझे आजीवन कारावास भी हो सकता था । मेरे नहीं रहने पर बीवी बच्चे अनाथ नहीं हो जायें, यह सोचकर ही मैंने यह निर्णय लिया था । मैंने आज तक सीमा का चेहरा नहीं देखा है मां । पर कल की घटना ने मुझे विचलित कर दिया है । मैं दावा तो नहीं करता कि मैंने 'काम' पर विजय प्राप्त कर ली है । मगर मुझे अपने आप पर विश्वास था । अब मैं यह जीवन हरिद्वार में भगवत भजन में बिताना चाहता हूं मां । मुझसे कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करना और मुझे ढूंढने का प्रयास मत करना । श्याम और सीमा को आशीर्वाद देना
तुम्हारा पुत्र
राधे"
सब लोग अवाक रह गए । हर मर्द "रावण" नहीं होता है ।
समाप्त
श्री हरि
8.11.22
Mithi . S
09-Nov-2022 11:25 AM
अच्छी रचना 👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
15-Nov-2022 10:28 PM
धन्यवाद जी
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Sana khan
08-Nov-2022 06:59 PM
Kahani to achi h aj ke jamane me bhi ky ese log hote h jo itna man dete h
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Hari Shanker Goyal "Hari"
08-Nov-2022 10:12 PM
आज के जमाने में भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है पर अखबारों में दुष्ट लोगों की दुष्टता ही छपती हैं ।
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